000 | 00884nam a2200205Ia 4500 | ||
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003 | OSt | ||
005 | 20240522173959.0 | ||
008 | 220128s9999 xx 000 0 und d | ||
020 | _a9789389830910 | ||
040 | _cCUS | ||
082 |
_a891.43109 _bSHR/K |
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100 |
_a श्रीवास्तव, जितेन्द्र _91947 |
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245 | 0 | _aकविता का घनत्व | |
260 |
_aदिल्ली: _bसेतु प्रकाशन, _c2021. |
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300 | _a303p. | ||
505 | _a1. सौ सूर्यो का सवेरा मुक्तिबोध की कविता 2.कवि-कर्म 3.नये सूर्य की नीली आभा 4.यहा सावन में रोते हैं मोर 5.अभी बहुत कुछ बचा हैं | ||
650 | _2कविता | ||
942 |
_2ddc _cWB16 _06 |
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947 | _a750 | ||
999 |
_c210110 _d210110 |